मास्टर जी

 लेखक परिचय 

डॉ ० मृत्युंजय कोईरी 

कृतियाँ : मेंड़ ( कहानी - संग्रह ) राजेश की बैल गाड़ी ( कहानी संग्रह ) 

किसानी कविताएँ ( सम्पादित ) 

उदय प्रकाश की कहानियों का समाजशास्त्रीय अध्ययन ( आलोचना ) सम्पर्क सूत्र : 07903208238 07870757972 ई - मेल : mritunjay 03021992@gmail.com 


            मास्टर जी 


अरविन्द दास हाईस्कूल शिक्षक हैं। जिनकी पोस्टिंग एक छोटा - सा शहर में हुई है । वहाँ के लोगों को अपना परिचय देते हैं । फिर सब अरविन्द दास को मास्टरजी - मास्टरजी कहकर पुकारने लगते हैं । इस हाईस्कूल में पूर्व से केवल दो ही शिक्षक हैं । एक हेडमास्टर , जो सामाजिक विज्ञान पढ़ाते और दूसरा हिन्दी । बच्चों के भविष्य का निर्माण करने वाले नये शिक्षक के आगमन से आदमी बहुत ज्यादा खुश हुए । शंकर नामक एक आदमी ने मास्टरजी को योगदान कराने हाईस्कूल ले गया। फिर मास्टर जी को स्कूल से आधे किलोमीटर दूर 10/10 का एक कमरा किराया पर उपलब्ध करा दिया । 


मास्टरजी 10/10 के कमरा में रहने लगे । जिसमें एक बेड , दरवाजा के अंदर तरफ एक हेंगर , किचन का सामान , बेड में दो - चार किताबें और बेड के नीचे एक बक्सा है । यह मास्टर जी के कमरा का दृश्य है । मास्टर जी महीना भर के बाद बीबी आशा को लेकर आ जाते हैं । बीबी कमरा का दृश्य देखकर मुँह पिचका लेती है । फिर भौं चढ़ाकर बोली- " ये कैसा कमरा लिया है । ना किचन , ना बेड रूम और ना बाथरूम ही कमन है ।" 


मास्टर जी सरल और सहज भाषा में बोलते हैं- " ओ मेरी जानू ! तुम बहुत दुखी हो रही है । दुखी होने की आवश्यकता नहीं है । हम कुछ दिनों में बेड रूम , किचन , हॉल और बाथरूम भी कमन वाला ढूँढ लेंगे । " 


मैडम शांत होकर बोली- " लेकिन बाथरूम भी तो कॉफी दूर है । बाल्टी में पानी लेकर जाना होगा।


" बेबी , मैंने कहा न , कुछ ही दिनों की बात है । फिर ..…..।"


 मैडम किसी तरह एडजस्ट करके रहने लगी थी । पर एक दिन आंधी - पानी आने के कारण लाइट नहीं आती है । रात को मैडम सौ गालियाँ देकर मोमबत्ती जला कर रोटी बना ली । रात भर गर्मी से मास्टर और मैडम सो नहीं सके । सुबह भी लाइट नहीं आने पर मास्टरजी को कुआँ से पानी रस्सी से निकालना पड़ा । बर्तन धोने , खाना बनाने से लेकर मैडम का स्नान करने तक का पानी निकालते थक गये । खुद स्नान करने के वक्त हाथ में रिस - रिस कर खून निकलने लगा था ।


 मास्टर जी नास्ते में रोटी की जगह भात खाते हैं । आज मैडम ने मास्टर जी के आगे केवल गरमा - गरम माड़ भात रख दी और बेड में लेट जाती है । मास्टरजी जब भात उठाकर खाने के वास्ते हाथ डाले कि गर्म से हाथ जल गया जलन से मास्टरजी उछल - कूद करने लगे । क्रोध से मास्टरजी थाली को आंगन में फेंक कर बिन खाये स्कूल चले जाते हैं ।


 मास्टरजी आज सुबह से परेशान थे । फिर बीबी ने माड़ भात देकर माइंड ऑफ कर दी । ऑफिस में जाकर अपना उपस्थिति दर्ज करते हैं । तभी हेडमास्टर बोलते हैं- " मास्टरजी आप आज कल बराबर लेट से आते हैं । आज आपने बहुत लेट कर दिया । घड़ी देख लीजिए । विद्यार्थी क्लास में टीचर के नहीं आने पर हल्ला करते हैं । " 


मास्टरजी हेडमास्टर का जवाब दिये बिना क्लास चले जाते हैं । मास्टरजी गणित के शिक्षक हैं । मास्टरजी को आते देख , सारे विद्यार्थी शांत हो जाते हैं । मास्टरजी क्लास रूम के अंदर प्रवेश करके सीधे श्यामपट पर लिखते हैं- ( a + b ) 2 = ? 


एक - एक करके सारे विद्यार्थी को खड़ा करके पूछते हैं । जिसमें लगभग आधे से अधिक विद्यार्थियों ने ( a + b ) 2 = a 2 + 2ab + b2 कहा । लेकिन सारे विद्यार्थी के दोनों हाथ में तीन - तीन डंडा लगाते हैं । किसी विद्यार्थी में ये मजाल नहीं था कि मास्टरजी को कुछ कह सके । कई दफा विद्यार्थी को मास्टरजी का दंश झेलना पड़ा है । इसलिए कभी - कभी सही उत्तर जानते हुए भी चुपचाप रहते हैं । 


साल भर गुजर जाने पर भी मैडम को दूसरा कमरा नसीब नहीं हुआ। 10 / 10 कमरा में अपनी जिंदगी मास्टरजी के साथ लगड़ - झगड़ कर गुजारने पर विवश हैं । एक दिन भोर के समय मैडम बाथरूम जाने के वास्ते निकली । हाथ में बाल्टी उठाकर पानी भरने कुआँ चली जाती हैं । कुआँ के सामने जाकर बाल्टी से रस्सी निकालने के लिए हाथ डालने वाली थी कि बाल्टी में सांप देखकर चिल्ला उठी- “ सांप ! सांप ! ......…!" 


मास्टरजी गहरी नींद में सो रहे हैं । मैडम के चिल्लाने पर भी जब मास्टरजी कमरा से नहीं निकलते हैं । तब मैडम क्रोधित होकर कुआँ के सामने दूसरे के बाल्टी में भरा हुआ पानी को लेकर आ जाती हैं और मास्टरजी के शरीर में उड़ेल देती है । मास्टरजी कौन है बे ? कौन है बे ? कहकर चिल्ला उठते हैं । मैडम के हाथ में बाल्टी देखकर मास्टरजी मैडम के गाल में दो थप्पड़ जोड़ देते हैं । मैडम क्रोध से ओर चिल्लाने लगी- " तुम एक दिन मुझे मरा के ही रहेगा । तभी इस कमरा से जायेगा । तुम कसम खा लिया है । कंजूस ! तुमको मैं कब से कह रही हूँ कि दूसरा कमरा ढूँढ़ लीजिए । लेकिन तुमको कोई कमरा ही नहीं मिलता है । बाकी सब को कमरा मिलता है । कंजूस ! " 


" लेकिन हुआ क्या ? और तुम सुबह - सुबह मेरे शरीर में पानी क्यों डाली ? मेरी नींद खराब कर दी । "


 " हुआ क्या ? कब से मैं चिल्ला रही थी । तुमको कुछ पता है । असुर जैसा सोते हो । आज मैं मर ही जाती । भगवान न बचा लेते तो ! " 


" आखिर हुआ क्या है ? "


 " मैं बाल्टी लेकर कुआँ गयी …......। " 


"अच्छा ! ये बात है । अब समझा

। " 

" आज ही दूसरा कमरा ढूँढ़ लो मुझे इस कमरा में अब एक पल भी नहीं रहना है । वरना ... ।"


" तुम जितनी आसानी से कह देती हो। उतना आसान नहीं है , कमरा ढूँढ़ना । ये एक छोटा - सा शहर है । यहाँ बड़े शहरों की तरह दो - तीन बेड रूम , हॉल , किचन और बाथरूम वाला कमरा नहीं मिलता है। और उसमें पैसा भी तो ज्यादा लगता है । अभी ही यदि सारा पैसा खर्च कर लेंगे , तो बाल - बच्चा का पढ़ाई - लिखाई और शादी - ब्याह कहाँ से करेंगे ? नौकरी से रिटायर होने के बाद एक रुपया कहीं से आने वाला नहीं है । सरकार ने पुरानी पेंशन योजना बंद कर दी है । कोई पेंशन भी मिलने वाला नहीं है । इसीलिए मैं पैसा बचाने की कोशिश कर रहा हूँ । और तुम है कि कुछ समझती ही नहीं हो । केवल बड़बड़ाती रहती हो । "


 " मैं आपका भाषण सुनना नहीं चाहती हूँ । चुपचाप जो कह रही हूँ । वह कीजिए , वरना मैं यहाँ खाना बनाने वाली नहीं हूँ । "


मास्टरजी फुसफुसाने लगे- " मैं भी दूसरा कमरा ढूँढने वाला नहीं हूँ । मुँह में कह देने से ही हो गया कितना खर्च है । ये औरत शुरू से मुझे तंग की है । कभी चैन से रहने नहीं दी । ये औरत है या डायन । कुछ समझ में नहीं आ रहा है । यहाँ रहने वाले किसी परिवार को दिक्कत नहीं है । केवल इन्हीं को दिक्कत है । रंडी ! "

 " मैं सब सुन रही हूँ । मैं रंडी हूँ। और तू क्या है ? रंडा ! साला कंजूस ! माखनजूस ! कमरा नहीं मिलने का बहाना करता है । मुझे तुम्हारी नीयत पता है । "


" बाप के वहाँ पुआल के घर में रहती थी । खेत में काम करने जाती थी । अभी बड़ी - बड़ी बात कर रही हो । "


 " ये मास्टरजी ! मैं अपने बाप के घर में खेत काम करने जाती थी , कोई चोरी करने नहीं । मेरे बाप ने तुझे दहेज देकर शादी दी है । मैं भाग कर नहीं आई हूँ । बीच में मेरा बाप का नाम मत लेना , वरना ! " 


" वरना , तुम क्या कर लेगी ? " 


" तुमको जलाकर राख कर दूँगी । मैं लक्ष्मी भी हूँ और काली भी । "


 " देख आशा ! तू बात को ज्यादा ही बड़ा रही हो । आज स्कूल में जरूरी काम है । चुपचाप खाना बना , जो हुआ सो भूल जा । मैं आज स्कूल से आते वक्त कमरे की तलाश भी करते आऊँगा । तेरी कसम । " 


" तू मेरी झूठी कसम मत खा । मैं आज तुम्हारे कितनो भी कसम खाने पर खाना बनाने वाली नहीं हूँ । मुझे क्रोध मत दिला । " 


" ओ बेबी! ज्यादा गुस्सा नहीं करना चाहिए । गुस्सा सेहत के लिए हानि कारक है । सब गुस्सा थूक दे । और चल खाना बना । मैं आज पानी ला देता हूँ । " कहता मास्टरजी पानी लाने चले जाते हैं । किंतु मैडम हाँ से हूँ तक नहीं बोली । मास्टरजी पानी लाकर स्नान करने चले जाते हैं । जब स्नान करके आ जाते हैं । तब तक मैडम बेड में पड़ी हुई है । ना बर्तन धोई है और न ही खाना बनाई है । बाल्टी में पानी जस का तस रखा हुआ है । मास्टरजी क्रोध से पानी को कमरा के अंदर उडेल देते हैं और सारे बर्तन को आंगन में फेंक कर स्कूल चले जाते हैं । 


स्कूल में विद्यार्थी प्रार्थना के वास्ते लाइन में लग रहे हैं । कुछ विद्यार्थी यूनिफॉर्म में नहीं हैं । जिन्हें अलग लाइन में खड़ा होने का निर्देश देकर मास्टरजी ऑफिस चले जाते हैं । मास्टरजी दो मिनट में ऑफिस से एक डंडा लेकर आ जाते हैं । सबको अपना दोनों हाथ आगे करके खड़ा होने को कहते हैं । फिर दोनों हाथ में दो - दो डंडा लगाते हुए मशीन की तरह आगे बढ़ रहे थे । वहीं लाइन में खड़ा एक लड़का ने हाथ नीचे करते हुए कहा " सर , कल बारिश हुई थी । स्कूल से जाते वक्त भींग गया था । इसीलिए यूनिफॉर्म नहीं पहना हूँ । "


" अच्छा ! बहाना तो बहुत अच्छा बना लिया है । तुम्हारा नाम क्या ? "


 " सर , मेरा नाम जयवंत कुमार है । " 


" तो जयवंत , तुम अपना दूसरा सेट यूनिफॉर्म क्यों नहीं पहना हीरो बनता है । ”


 " सर मेरे पास एक ही सेट यूनिफॉर्म है।"


" अपने बाप से क्यों नहीं खरीदवाते हो । " 


" सर , मेरा बाप बहुत गरीब है । किसी तरह एक सेट यूनिफॉर्म खरीद दिया है । वह भी मजदूरी करके । " 


" साला ! बहाना बनाता है । मेरा बाप गरीब है । फिर ये नया कपड़ा कहाँ से आया । "


" सर , ये कपड़ा मेरे मामा ने अपनी शादी में खरीद दिया था । "

 

" फिर बहाना । "


 " सर , मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ । मेरी माँ की कसम | " 


" माँ की झूठी कसम खाता है । अभी सारा सच उगलेगा । " कहता डंडा से इतना मारने लगे कि सारे विद्यार्थी डर से भाग गये । जयवंत दर्द से चिल्ला - चिल्लाकर उछलने लगा , जयवंत जितना उछल कूद करता , मास्टरजी ओर जोर - जोर से मारते । उछल - कूद करते - करते एक बार सिर में लग जाता है । जयवंत धड़ाम से जमीन में पेड़ की भांति गिर जाता है । मास्टरजी गिरने के बाद भी दो - चारे लात लगाते हुए कहते हैं- " अब मरने का बहाना करता है । साला ! मास्टरजी को पहचानता नहीं है । " 


मास्टरजी के चले जाने के बाद विद्यार्थी पानी लेकर आते है । लेकिन तब तक जयवंत का शरीर निश्वास हो चुका था ।

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